आज के इस लेख में हम Aas Mata ki Kahani और Aas Mata ki Puja Vidhi के बारे के जानेंगे। आस माता को वैष्णो देवी का एक प्रसिद्ध रूप के नाम से जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं में वैष्णो देवी को आस माता के नाम से भी जाना जाता है।
वैष्णो देवी उत्तरी भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर में स्थित वैष्णोदेवी मंदिर की इष्टदेवी हैं। ऐसा माना जाता है कि आस माता का व्रत रखने से जीवन की सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं और जीवन सुखदाई हो जाता है।
Aas Mata ki Kahani | Aas Mata ke Vrat ki Kahani
बहुत पुराने समय की बात है, एक छोटे से गांव में आसलिया नाम का व्यक्ति रहता था। वह आस माता का बहुत बड़ा भक्त था और हर साल उनकी पूजा करता था। वह हर साल पूरी विधि के साथ आस माता का पूजा करता और व्रत रखता था।
वह चौसर का एक मांझा हुआ खिलाड़ी था। उसकी एक खास बात यह थी कि वह चौसर में जीते या हारे,लेकिन चौसर खेलने के बाद ब्राह्मणों को भोजन जरूर करता था।
अक्सर वह ब्राह्मणों को भोजन कराने के लिए अपने घर लाता था। जिसके वजह से उसकी मां और भाभियों उससे बहुत नाराज रहती थी। एक दिन उसकी मां कहती है कि तुम चौसर में चाहे जीतो या हारो, हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
एक तो तुम कोई काम-धाम करते हो नहीं और आए दिन किसी न किसी को भोजन कराने के लिए घर ले आते हो। ऐसा कह कर उसके परिवार वाले उसे घर से चले जाने के लिए कहते हैं।
आसलिया अपने घर और गांव को छोड़कर शहर चले जाता है। शुरू-शुरू में उसे बहुत परेशानियां होती है। कुछ दिन बाद, आस माता का व्रत का समय आया। उसने सब कुछ छोड़कर आस माता का पूजा करने लग गया।
आस माता की कृपा से उसकी सारी परेशानियां खत्म हो गई। चौसर के खेल में वह शहर में भी प्रसिद्ध हो गया और उसके पास धन दौलत की कोई कमी नहीं रही।
उसके चौसर के खेल की प्रतिभा के बारे में जानकर वहां के राजा ने उसे चौसर खेलने के लिए अपने महल में बुलाया। राजा और आसलिया के बीच में चौसर का खेल शुरू हुआ। राजा उस खेल में आसिया से हार जाते हैं।
राजा उसके खेल से बहुत प्रभावित होते हैं और अपनी बेटी का विवाह उसके साथ कर देते हैं। उसके बाद वह उस राज्य का उत्तराधिकारी बन जाता है।
उधर उसके गांव में उसके घर छोड़ने के बाद से ही बहुत सारी परेशानियां आने लगी थीं। उसके परिवार वाले खाने-पानी के लिए तरसने लगे थे। भूख प्यास से दुखी होकर भटकते हुए वह भी उस शहर में पहुंच जाते हैं, जहां आसलिया राजा बन चुका था।
शहर पहुंचने के बाद उन्होंने आसलिया के बारे बात करते हुए लोगों से सुना। वे लोग बोल रहे थे कि आसलिया हर रोज ब्राह्मणों को भोजन कराता है और उसके जैसा चौसर कोई नहीं खेल सकता।
यह सब बात सुनने के बाद उन्हें आसलिया की याद आ जाती है। अपना भूख मिटाने के लिए वह सभी राजा के महल में पहुंच जाते हैं। उस दिन राजा स्वयं ही अपने हाथों से भोजन परोस रहे होते हैं।
तभी उन्होंने अपने परिवार वालों को देखा। उन्हें देखकर आसलिया की आंखों में आंसू आ जाते हैं। वह अपने परिवार वालों को सभी लोगों से मिलवाता है। तब उसके परिवार वाले अपने किए पर शर्मिंदा हो जाते हैं और आसलिया से क्षमा मांगते हैं।
आसलिया उनसे कहता है कि मैंने आपकी बातों का कभी बुरा नहीं माना। जो आपने किया वह आपकी करनी थी और जो मैंने किया वह मेरा कर्म था। आज मुझे जो कुछ भी मिला है वह सब आस माता की कृपा से ही मिला है।
उसके बाद आसलिया अपने परिवार वालों को उसी महल में रख लेता है और बड़े सुख से राज करने लगता है। फिर सभी लोग मिलकर आस माता का व्रत और पूजा करते हैं।
Aas Mata ki Puja Vidhi
एक पट्टे पर जल का लोटा रखें और लोटे पर रोले का स्वास्तिक बनाएं। चावल चढ़ाएं, सात दाने गेहूं के हाथ में लेकर आस माता की कहानी सुनें। हलवा पूरी और उसमें कुछ रुपए रख कर उसे अपनी सास को देकर और उनको प्रणाम कर लें। बाद में खुद भी फलाहार कर लें।
हम आशा करते हैं कि आपको aas mata ke vrat ki kahani पसंद आई होगी। अगर आप भी आस माता के सच्चे भक्त हैं और हर साल उनकी पूजा करते हैं तो इसमें दी गई विधि को जरूर अपनाएं और यह कथा उस दिन जरूर सुने।
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