Dasha Mata ki Kahani in Hindi | दशा माता की कथा

आज के इस लेख में हम Dasha Mata ki Kahani के बारे में जानेंगे और यह भी जानेंगे कि इनकी कहानी क्यों सुनी जाती है। दशा माता का व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को किया जाता है।

यह व्रत घर में सुख-शांति लाने के लिए किया जाता है। इस दिन dasha mata ki katha सुनी जाती है। सभी सुहागन औरतें स्नान करके पूजा की सामग्री इकठ्ठा करके पूजा करती हैं।

दशा माता की पूजा सभी औरतों को करना चाहिए चाहे वह सुहागिन हो या विधवा, क्योंकि यह पूजा करने से घर में सुख-शांति आती है। इस पूजा की एक विशेष बात होती है, की एक डोरी में दस गांठ लगाया जाता है और उसे हल्दी से रंगा जाता है।

पूजा करने के बाद इस डोरी को गले में पहना जाता है। इस साल पहनी गयी डोरी अगले साल उतारकर, फिर से नयी डोरी पहनने का रिवाज होता है।

 

Dasha Mata ki Kahani | Dasha Mata ki Katha

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पुराने समय की बात है, एक नल नाम के राजा थे और उनकी रानी का नाम दमयंती था। उनके दो बच्चे भी थे। राजा और रानी दोनों सुख पूर्वक राज करते थे। उनके राज में प्रजा बहुत खुश और संपन्न थी।

एक दिन, एक बूढ़ी औरत राज महल में आती है और रानी से कहती है कि दशा का डोरा ले लीजिए। उसी वक्त बगल में खड़ी दासी बोलती है कि, हाँ रानी मां यह डोरा ले लीजिए।

आज के दिन सभी सुहागन महिलाएं दशा माता का पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं। साथ ही साथ इस दशा का पूजा करके अपने गले में बांधती हैं, जिससे कि घर में सुख-समृद्धि आती है।

फिर रानी ने दशा का डोरा ले लिया और विधि के अनुसार पूजा करके अपने गले में बांध लिया। कुछ दिन बाद राजा ने रानी के गले में वह दशा का डोरा देखा और पूछा कि इतने सारे गहने पहनने के बावजूद तुमने यह डोरा क्यों पहना हुआ है।

रानी के कुछ कहने से पहले ही राजा ने उस डोरे को तोड़ कर जमीन पर फेंक दिया। फिर रानी ने उस डोरे को जमीन से उठाया और कहा यह डोरा तो दशा माता का था और आपने उनका अपमान किया है।

अगले दिन राजा जब रात में सो रहे थे, तब दशामाता उनके सपने में आती हैं। वह कहती हैं कि, हे राजा तुम्हारी अच्छी दशा अब जा रही है और बुरी दशा आ रही है। तुमने मेरा अपमान करके अच्छा नहीं किया। ऐसा कह कर वह गायब हो जाती हैं।

उस दिन के बाद से राजा के पास जितनी भी धन दौलत थी, हाथी घोड़े थे, सैनिक थे, और सुख-शांति, सभी धीरे-धीरे कम होने लगे। राजा की ऐसी हालत हो गई थी कि खाने को भी कुछ नहीं था।

फिर एक दिन राजा ने रानी से कहा कि तुम दोनों बच्चों को लेकर मायके चले जाओ। रानी कहती है कि मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। राजा ने कहा कि हम इस राज्य को छोड़कर कहीं और चलते हैं और वहां पर जो भी काम मिलेगा हम वो काम कर लेंगे।

राजा, रानी और उनके दोनों बच्चे अपने राज्य को छोड़कर चल गए। चलते-चलते रास्ते में भील राजा का महल आया। वहां राजा अपने दोनों बच्चों को अमानत के तौर पर छोड़ दिए। कुछ देर और चलने के बाद राजा के मित्र का घर आता है।

राजा बोलते हैं कि चलो कुछ देर हम मेरे मित्र के यहां विश्राम कर लेते हैं। वहां पहुंचने के बाद मित्र ने उनका स्वागत किया और उनको खाना खिलाया। उन दोनों ने रात वहीं बितायी और सुबह फिर से अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े।

कुछ देर चलने के बाद राजा की बहन का घर आता है। उनकी बहन उनके लिए रोटी और कांदा थाली में रखकर आती है। राजा ने अपने हिस्से का भोजन कर लिया, लेकिन रानी ने अपने हिस्से को जमीन में गाड़ दिया।

कुछ देर बाद एक नदी मिलती है। राजा उस नदी से मछली पकड़ते हैं और रानी से बोलते हैं कि तुम इन मछलियों को भुनो। मैं पास कि गांव से कुछ खाना लेकर आता हूं।

बगल के गाँव में मुखिया सभी लोगों को भोजन करा रहे थे। राजा ने थोड़ा भोजन अपने लिए भी मांग लिया। फिर जब राजा भोजन लेकर वापस आ रहे थे, तभी एक चील ने झपट्टा मारकर उनका भोजन गिरा दिया।

फिर राजा ने सोचा कि अगर मैं खाली हाथ जाऊंगा, तो रानी सोचेगी कि मैं अकेला ही भोजन कर के आ गया। उधर रानी जब मछलियों को भुनने ही वाली थी, तभी मछलियां जीवित होकर पानी में चले गयीं।

रानी सोचने लगती है कि अगर राजा आएंगे तो सोचेंगे कि मैंने सारी मछलियां खुद ही खा ली। जब राजा आए तो मन ही मन वह समझ गए और आगे चलने लगे।

चलते-चलते रानी के माईके का गांव आ जाता है। राजा बोलते हैं कि तुम अपने मायके चली जाओ और वहाँ कोई दासी का काम कर लेना। मैं इसी गाँव में किसी घर में नौकर का काम कर लूंगा। ऐसे ही काम करते करते कुछ दिन गुजर जाता है।

एक दिन दासी रानियों के बालों की चोटी कर रही थी। फिर राजमाता ने उसे कहा की बेटी मैं भी तेरी चोटी कर देती हूं। ऐसा करते-करते राजमाता की आंखों में आंसू आ जाता है, जिसे देखकर दासी पूछती है कि आप क्यों रो रही हैं।

राजमाता कहती है कि तुम्हारे ही जैसी मेरी एक बेटी थी जिसके बालों की चोटी किया करती थी। इसलिए मुझे उसकी याद आ गई। तब दासी ने कहा कि मैं ही आपकी बेटी हूं। दशा माता के श्राप से मेरे बुरे दिन चल रहे हैं, इसलिए यहां चली आई।

माता ने कहा कि तुमने हमसे यह बात क्यों छुपाई। दासी ने कहा कि मैं अगर सब कुछ बता देती तो मेरे बुरे दिन नहीं कटते। आज मैं दशा माता का व्रत करूंगी और उनसे अपनी गलती की माफी मांगूंगी।

फिर राजमाता ने अपनी बेटी से पूछा की हमारे जमाई राजा कहां हैं। तो दासी कहती है कि वह इसी गांव में किसी के घर नौकर का काम कर रहे हैं।

उनकी खोज कराई गई और महल में लाया गया। उन्हें स्नान कराया गया, नए वस्त्र पहनाए गए और अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर उन्हें भोजन कराया गया। अब दशा माता के आशीर्वाद से राजा नल और दमयंती के अच्छे दिन वापस लौट आए।

कुछ दिन बाद वे दोनों अपने राज्य वापस जाने का फैसला करते हैं। दमयंती के पिता ने उन्हें खूब सारा धन-दौलत, हाथी, घोड़े आदि देकर विदा किया।

वापस जाते समय वही जगह फिर से आया, जहां पर रानी ने मछलियों को भुना था और राजा के भोजन पर चील ने झपट्टा मारकर जमीन पर गिरा दिया था।

तब राजा ने कहा कि, तुमने सोचा होगा कि मैंने अकेले ही भोजन कर लिया था लेकिन ऐसा नहीं था, एक चील ने झपट्टा मारकर सारा भोजन जमीन पर गिरा दिया था।

तब रानी ने कहा कि, आपने भी यह सोचा होगा कि मैंने सारी मछलियां भून कर खुद खा ली होउंगी। लेकिन ऐसा नहीं था, वे मछलियां जीवित होकर पानी में वापस चली गई थीं।

कुछ देर चलने के बाद राजा की बहन का घर आया। राजा की बहन ने मोतियों से सजी थाली ले कर आयी। तभी दमयंती ने धरती माता से प्रार्थना किया और कहा की मां आज मेरी अमानत मुझे वापस लौटा दो।

यह कहकर उस जगह को खोदा, जहां पर उसने रोटी और कांदा गाड़ दिया था। खोदने पर रानी ने देखा कि रोटी सोने का और कांदा चांदी का हो गया है। यह दोनों चीजें उसने बहन की झोली में डाल दी और आगे चले गए।

कुछ देर चलने के बाद राजा अपने मित्र के घर पहुंचे। उसने पहले के ही जैसे राजा का दिल से स्वागत किया। रात को उन्हें उसी कमरे में सुलाया जहां पर पहले रुके थे।

फिर थोड़ी देर चलने के बाद, भील राजा का महल आया। वहां पहुंचने के बाद राजा ने अपने दोनों पुत्रों को मांगा और भील राजा ने उन्हें दोनों पुत्रों को वापस लौटा दिया।

फिर चलते-चलते वे जैसे ही अपने राज्य के निकट पहुंचे गांव वालों ने उनका स्वागत किया और गाजे-बाजे के साथ उन्हें महल में पहुंचाया। राजा और रानी फिर से पहले जैसे राजपाठ सँभालने लगे और प्रजा फिर से सुखी और संपन्न हो गए।

 

FAQs related to Dasha Mata Vrat Katha

Dasha Mata ki Kahani के मुख्य पात्र कौन कौन थे?

राजा, नल और रानी, दमयंती इस कहानी के मुख्य पात्र थे।

रानी ने दशा का डोरा अपने गले में क्यों पहना था?

रानी ने वह डोरा इसलिए पहना क्योंकि ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है।

राजा ने जब रानी के गले में वह डोरा देखा तब  उसने क्या किया?

उन्होंने डोरा तोड़ दिया और जमीन पर फेंक दिया।

राजा के डोरा तोड़ने के बाद क्या हुआ?

डोरा तोड़ने के बाद राजा का राजा की संपत्ति, धन-दौलत, खुशी इत्यादि खत्म होने लगे।

राजा ने क्या फैसला किया जब उनकी स्थिति खराब होने लगी?

उन्होंने फैसला किया कि वह अपने राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य चले जाएंगे और जो भी काम मिलेगा वहां कर लेंगे।

राजा और रानी को मिला श्राप कैसे खत्म हुआ?

जब रानी ने अपनी माँ को अपनी असली पहचान बताई और दशा माता की पूजा कर उनसे क्षमा माँगा, तब जाकर उनका श्राप खत्म होता है।

Dasha Mata ki Kahani से हमें क्या सीख मिलती है?

यह कहानी हमें परंपरा के प्रति सम्मान का महत्व, मान्यताओं का अनादर करने के परिणाम और क्षमा की शक्ति के बारे में सिखाती है।

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